ग्रामीण कार्यशील महिलाऐ पारिवारिक एवं वैवाहिक सामंजस्य
Abstract
इतिहास इस बात का साक्षी है कि भारतीय समाज परम्परागत रूप से पुरुष प्रधान रहा है। समाज में महिलाओं की प्रस्थिति सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक रूप से दयनीय रही है। महिलाऐं जीवन के प्रत्येक स्तर पर संघर्षरत रही है। शिक्षा के अधिकार से वंचित होते हुए भी पारिवारिक संस्कार का बोध उन्हें अपने पथ से कभी विपथ नहीं होने दिया। भारत कृषि प्रधान देश होने के साथ पुरुष सत्तात्मक समाज भी है जहाँ महिलाऐ घर की चाहरदीवारी में जीवन निर्वहन करती रही हैं। जातीय समीकरण में भी उच्च जाति की महिलाओं की अपेक्षा निम्न जातीय महिलाऐं अधिक स्वतंत्र रही हैं। स्वतंत्रता के पश्चात देश के सामाजिक, आर्थिक, एवं राजनैतिक विकास के परिणाम स्वरूप भारतीय महिलाऐं भी आर्थिक क्रिया-कलापों में प्रतिभाग करने लगी। शिक्षा के अधिकार के साथ-साथ आरक्षण प्राप्त होने से विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं की सक्रियता बढ़ी है।