स्वामी विवेकानंद के शिक्षा दर्शन का वर्तमान परिप्रेक्ष्य में वैज्ञानिक मूल्य
Abstract
स्वामी विवेकानंद भारतवर्ष के उन अमर सपूतों में से हैं जिनकी कीर्ति अखिल विश्व का
निरंतर आलोकित कर रही हैं। उनके आध्यात्मिकता की गहराई तथा संपूर्ण मानव जाति के प्रति उनका
प्रेम हमारे देश की धराहे र हैं। स्वामी विवके ानंद भारतीय दर्शन के पिं डत अद्वैत वेदांत को व्यवहार रूप
देने के लिए ख्यातिलब्ध हैं। स्वामी जी अपने दश्े ा के नागरिकां े की अशिक्षा और निर्धनता से बहुत
व्यथित थे। इसे दूर करने के लिए उन्हांने े शैक्षिक उन्नयन हेतु अथक प्रयास किया। स्वामी जी के
अनुसार ज्ञान के दो रूप हैं वस्तु जगत का ज्ञान और आत्क का तत्व का ज्ञान, मनुष्य को इन दोनां
का ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। उनका मानना था कि जीवन का अंतिम उद्दश्े य आत्मानुभूति या मोक्ष हैं।
आत्मानुभि त के लिए भक्तियोग, ज्ञानयोग, कर्मयोग आवश्यक हैं। वह भारत में ऐसी व्यवस्था चाहते थे
जिससे व्यक्ति चरित्रवान और आत्मनिर्भर बने तथा प्रयोग के आधार पर सिद्ध ज्ञान को प्राप्त करें जो
उसके बहुआयामी उत्थान में सहायक बने।