नाट्य साहित्य में प्रकृति के सौन्दर्य का विवेचन
Keywords:
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Abstract
धर्म और जीवन का सम्बन्ध अनादि काल में चला आ रहा है और नाटक जीवन की दृश्याभिव्यक्ति है। अपनी आरंम्भिक अवस्था से ही नाटक की प्रकृति लोकरंजन, लोकशिक्षण और लोकरक्षण की रही है। नाटक की उत्पत्ति मनुष्य के आत्मविस्तार और सहकार की भावना की अभिव्यक्ति का प्रतिफलन है। संस्कृत नाटक रस प्रधान होते है, नाटक एक तरह का काव्य है ’काव्येषु नाटक रम्यम्’ कहकर इसकी विशिष्टता ही रेखांकित की गई है।Downloads
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Published
2024-03-30
How to Cite
माथुरर., & त्रिपाठीअ. (2024). नाट्य साहित्य में प्रकृति के सौन्दर्य का विवेचन. Humanities and Development, 19(01), 17-21. https://doi.org/10.61410/had.v19i1.167
Section
Research Article
Copyright (c) 2024 HUMANITIES AND DEVELOPMENT

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