भारतीय सांस्कृति का विदेशों पर प्रभाव

  • रेखा श्रीवास्तव असिस्टेंट प्रोफेसर, समाजशास्त्र राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, मुसाफिरखाना, अमेठी
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Abstract

प्रत्येक राष्ट्र की पहचान उसकी सांस्कृतिक धरोहर तथा सामाजिक मूल्यों से होती है भारतीय संस्कृति का स्वरूप निःसंदेह रूप से समन्वयवादी तथा लोक कल्याणकारी रहा है। संस्कृति मानव-चेतना की स्वस्तिपरक ऊर्जा का ऐसा उद्धमुखी सौन्दर्यमयी प्रवाह है जो व्यक्ति के मन, बुद्धि और आत्मा के सूक्ष्म व्यापारों की रमणीयता से होता हुआ समष्टि-कर्म की सुष्ठुता में साकार होता है। संस्कृति का एक रूप देश-काल सापेक्ष है तो दूसरा देश-काल निरपेक्ष। सचमुच भारत एक महासागर है। भारतीय संस्कृति महासागर है। विश्व की तमाम संस्कृतियों आकर इसमें समाहित हो गई है। आज जिसे आर्य संस्कृति, हिन्दू संस्कृति आदि नामों से जाना जाता है, वस्तुतः वह भारतीय संस्कृति है। जिसकी धारा सिंधु घाटी की सभ्यता, प्रागवैदिक और वैदिक संस्कृति से झरती हुई नवोन्मेषकार तक बहती रही है। अनेकानेक धर्मो सभ्यताओं और संस्कृतियों को अपने में समाहित किए हुए इस भारतीय संस्कृति को सामाजिक संस्कृति की कहना उचित है। संस्कृति की सामाजिकता का तात्पर्य है कि इसमें अनेक ऐसे मतों का प्रश्रय मिला है, जो परस्पर नकुल-सर्प- संबंध के लिए प्रसिद्ध रहे हैं। अनेकता में एकता के साथ हमारे समाज की रचनात्मक ऊर्जा अधिकाधिक मानवतावादी दृष्टिकोण अपना तो रही है। यह सांस्कृतिक अनुशासन भारतीय समाज की विशिष्टता है। गुरूदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर के एक गीत का भाव है यहाँ आर्य भी आए, अनार्य भी आए, द्रविड़, चीनी, शक, हूण, पठान, मुगल सभी वहांँ आए, लेकिन कोई भी अलग नहीं रहा, सह इस महासागर में विलीन होकर एक हो गए।

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Published
2024-03-30
How to Cite
श्रीवास्तवर. (2024). भारतीय सांस्कृति का विदेशों पर प्रभाव. Humanities and Development, 19(01), 32-38. https://doi.org/10.61410/had.v19i1.171