शिशुपाल वधम् महाकाव्य में रैवतक-पर्वत का प्राश्तिक सौन्दय

  • कु0 अन्जू मौर्या शोध छात्रा, संस्कृत-विभाग, डाॅ0-राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय, अयोध्याशोध छात्रा, संस्कृत-विभाग, डाॅ0-राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय, अयोध्या
  • रवि कुमार चौरसिया सहायक आचार्य, संस्कृत-विभाग, का0सु0 साकेत पी0जी0 काॅलेज, अयोध्या

Abstract

आकाश मार्ग से अवतरित मुनि नारद द्वारकापुरी में भगवान श्रीश्ष्ण से मिलकर अपने को श्तार्थ समझते हुए देवेन्द्र का सन्देश सुनाते हैं, जिसे सुनकर भगवान श्रीश्ष्ण द्विविधा में पड़ जाते हैं, क्योंकि एक तरफ राजसूययज्ञ में सम्मिलित होने के लिए युधिष्ठिर द्वारा आमन्त्रित किया गया है तो दूसरी तरफ संसार को पीड़ित करने वाले शिशुपाल पर अभियान करना है। अत्यन्त व्याकुल श्रीश्ष्ण ने उद्धव एवं बलराम के साथ मन्त्रणा की। तत्पश्चात युद्ध का आग्रह समाप्त होने पर सौम्य श्रीश्ष्ण ने चतुरङ्गिणी सेना सहित द्वारकापुरी से इन्द्रप्रस्थ की ओर प्रस्थान किया। सारथि दारूक सहित इन्द्रप्रस्थ जाते हुए श्रीश्ष्ण ने मार्ग में रैवतक पर्वत को देखा। जो वर्तमान में गुजरात प्रदेश में जूनागढ़ के पास एक पर्वत है जिसे गिरनार भी कहा जाता है। इसका वर्णन पुराणों में भी प्राप्त होता है। यहीं से अर्जुन ने श्रीश्ष्ण की बहन सुभद्रा का हरण किया था।

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Published
2024-12-30
How to Cite
मौर्याक. अ., & चौरसियार. क. (2024). शिशुपाल वधम् महाकाव्य में रैवतक-पर्वत का प्राश्तिक सौन्दय. Humanities and Development, 19(04), 32-34. Retrieved from https://humanitiesdevelopment.com/index.php/had/article/view/236