ग्रामों से नगरों की ओर पलायन: एक समाज‛ाास्त्रीय अध्ययन (बिहार के वै‛ााली जिला के संदर्भ में)
Abstract
ग्रामों से नगरों की ओर पलायन का क्रम कोई नयी स्थिति नहीं है। प्राचीन काल में भी गाँव से नौकरी, मजदूरी एवं जीवन यापन के लिए लोग गाँव से औद्योगिक ॉाहरों में अपने जीवनयापन, परिवार के पालन पोषण के लिए जाते रहे हैं। मूलतः ग्रामीण प्रकृति पर निर्भर जीवन यापन करते थे। प्रत्यक्ष प्रकृति के सम्पर्क में प्रकृति प्रदत्त वस्तुओं पर आधारित थे। कृषि ही जीवन यापन का मुख्य श्रोत था। कृषि भी पूर्णरूपेण प्रकृति पर निर्भर थी। पूर्व काल में जमींदारी प्रथा थी। जमीन पर जमींदारों का अधिकार था। गाँव के अधिकतर लोग या तो कृषक या कृषक मजदूर थे। जीवन यापन का मुख्य श्रोत कृषि यानि अनाज का उत्पादन था। जिसमें गाँव के भूमिहीन लोग कृषि श्रमिक के रूप में मजदूरी कर परिवार का भरण पोषण करते रहे हैं। इसके अतिरिक्त जातिगत, परम्परागत पे‛ाों पर आधारित अर्थव्यवस्था जैसे लोहा का औजार बनाना लुहार का काम था। इसी प्रकार लकड़ी का काम बढ़ई, सोना का आभूषण बनाना सुनार का काम, बाल बनाना नाई/हजाम तथा अन्यान्य कार्यों का विभाजन जातिगत था। इसके अतिरिक्त प‛ाुपालन, टोकड़ी बनाना, हस्त‛िाल्प कला, लघु उद्योग, कुटीर उद्योग से जीवन यापन करता था; यही आर्थिक श्रोत था। ग्रामवासियों का निवर्हन इन कार्यों के नहीं होने के कारण उन्हें परिवार के सुदृढ़ संचालन हेतु आर्थिक प्रबंधन में कठिनाईयाँ हुई जिसकी भरपाई के लिए ग्रामों से बाहर नगरों की ओर पलायन करना पड़ा।