पूर्वी उ.प्र. में बाल अपराध के लक्षण: बस्ती जनपद के सन्दर्भ में

  • रघुनाथ प्रसाद त्रिपाठी शोध पर्यवेक्षक एवं पूर्व उपाचार्य ए.एन.डी.के. पी.जी. कालेज बभनान-गोण्डा
  • अनिल कुमार मिश्र* *शोध छात्र डॉ. राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय-अयोध्या

Abstract

अपराध की भांति बाल अपराध भी भारत की एक प्रमुख समस्या है इसके विस्तार का पता लगाना भी एक कठिन कार्य है क्योकि अनेक बाल अपराधों के मामले में पुलिस को सूचित नही किया जाता है। बाल अपराधके मामले पुलिस द्वारा दर्ज किये जाते है, उनसे उनके विस्तार का पता चलता है। ‘किशोर न्याय अधिनियम 1986’ भारत में 2 अक्टूबर 1987 ई0 को लागू हुआ जो पहले के अधिनियमों को रद्द कर उनका स्थान लेता है। इस अधिनियम में ‘बाल’ शब्द की परिभाषा सोलह वर्ष से कम आयु के लड़के या अठारह वर्ष से कम लड़की के रूप में दी गई है। इससे पहले भारत में 21 वर्ष से कम लड़कियों को ‘बाल’ माना जाता था।

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Published
2022-06-06
How to Cite
त्रिपाठीर., & मिश्र*अ. (2022). पूर्वी उ.प्र. में बाल अपराध के लक्षण: बस्ती जनपद के सन्दर्भ में. Humanities and Development, 17(1), 19-22. https://doi.org/10.61410/had.v17i1.34