अनुसूचित जनजातियों में सामाजिक-शैक्षिक परिवर्तन के नए आयाम (उत्तर प्रदेश के संदर्भ में)

  • सुनीता देवी शोधछात्रा-समाजशास्त्र डॉ. राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय, अयोध्या
  • योगेन्द्रप्रसाद त्रिपाठी* *प्रोफेसर: समाजशास्त्र विभाग का.सु. साकेत स्नातकोत्तर महाविद्यालय, अयोध्या
Keywords: जनजाति, अनुसूचित जनजाति, सामाजिक परिवर्तन, शैक्षिक परिवर्तन, जनजातीय संगठन, गैर-सरकारी संगठन, सरकारी संगठन, सामाजिक समस्या, शैक्षिक समस्या।

Abstract

भारत में जनजातियों का समुचित विस्तार देखने को मिलता है। इनको क्षेत्रीय विषमताओं तथा सांस्कृतिक विलक्षणताओं के कारण अलग-अलग नामों से जाना जाता है, जैसे- जनजाति, आदिम जाति, वन्य जाति, जंगली जाति आदि। डॉ0 घुरिये ने तो इन्हें ‘पिछड़े हिन्दू’ कहा है। जब कुछ विशेष जनजातियों को संविधान की अनुसूचि में शामिल कर दिया गया तो उन्हें ‘अनुसूचित जनजाति’ के नाम से जाना जाने लगा। भारत में अनुसूचित जनजातियों की जनसंख्या वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार 104545716 है जो कुल जनसंख्या का 8.6 प्रतिशत है। जबकि उत्तर प्रदेश की कुल जनसंख्या में से 1134273 अनुसूचित जनजातियाँ है जो कुल जनसंख्या का 0.6 प्रतिशत ही है। उ0प्र0 की अनूसूचित जनजातियों में पिछले कुछ दशक में सामाजिक-शैक्षिक परिवर्तन देखने को मिले हैं जिनके कुछ नए आयाम हैं। जिसे इस शोध पत्र में प्राथमिक एवं द्वितीयक स्रोतों द्वारा आँकड़े एकत्रित कर प्रस्तुत किया गया है।

Downloads

Download data is not yet available.
Published
2022-06-06
How to Cite
देवीस., & त्रिपाठी*य. (2022). अनुसूचित जनजातियों में सामाजिक-शैक्षिक परिवर्तन के नए आयाम (उत्तर प्रदेश के संदर्भ में). Humanities and Development, 17(1), 66-70. https://doi.org/10.61410/had.v17i1.45