ग्रामीण भारत में शक्ति संरचना तथा नेतृत्वः एक समाजशास्त्रीय विश्लेषण
Abstract
ग्रामीण भारत में शक्ति संरचना प्राचीन काल से ही महत्वपूर्ण भूमिका में रहा है। सत्ता द्रव्य की भाँति किसी भी समाज के आर्थिक व्यवस्था और एकीकरण का आधार होता है। पारसन्स के अनुसार, सत्ता सामान्य प्रकार की क्षमता है जो किसी सामूहिक व्यवस्था में अनेक इकाइयों से उनके भूमिकाओं को बलपूर्वक करता है। इसी क्रम में मैक्सवेबर ने लिखा है कि शक्ति को एक व्यक्ति अथवा अनेक व्यक्तियों द्वारा अपनी इच्छाओं को दूसरों पर क्रियान्वित करने अथवा दूसरे व्यक्ति द्वारा विरोध करने पर भी उसे पूर्ण कर लेने की स्थिति को कहते हैं। मैकियावली ने सत्ता प्रारूप की व्याख्या करते हुए इसको व्यक्ति से सम्बन्धित बताया है कि व्यक्ति अपनी सत्ता को कैसे बनाया रखता है और उसको कैसे बढ़ाता है। उनके अनुसार सत्ता स्वयं में व्यक्ति के लिए लक्ष्य होती है। डॉ. योगेन्द्र सिंह1 ने अपने लेख रूरल सोशियोलॉजी इन इण्डिया में पूर्वी उत्तर प्रदेश के छः गांवों का अध्ययन कर यह उल्लेख किया कि ग्रामीण सत्ता संरचना में गांव के परम्परागत उभरते हुए नेतृत्व का अध्ययन आवश्यक है क्योंकि जब एक उभरते हुए नेताओं की भूमिकाओं का मूल्यांकन नहीं करेंगे तब तक शक्ति संरचना का अध्ययन अधूरा रह जाता है।